दलित उत्पीड़न पर रिपोर्टिंग के अनुभव: मीडिया में जातिवाद की सच्चाइयां
जातिवाद किसे कहते हैं इसे मैं अपने साथ कई बार होने वाले वाकये पर बताता हूँ..
बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की लीगेसी होने के नाते हम अपने न्यूज संस्थान द मूकनायक में दलित, आदिवासी समाज के हक, अधिकारों और दलित उत्पीड़न की खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित करते हैं।
अक्सर जब हम अपने प्लेटफॉर्म पर किसी दलित के साथ हुए भेदभाव या उत्पीड़न की ख़बर प्रकाशित करते हैं तो दोनों पक्षों के बयान और उनके स्थानीय थाने में दर्ज FIR के बारे में SHO से बात करते हैं फिर सबके बयानों के साथ खबर प्रकाशित कर देते हैं।
जैसे ही ये ख़बर हम सोशल मीडिया पर पब्लिश करते हैं वैसे तुरंत दलितों पर उत्पीड़न करने वाले अपराधियों के किसी दूसरे स्टेट के उनके स्वजातीय उसी खबर के पोस्ट में कमेंट करते हैं कि, “ये फेंक न्यूज़ फैला रहे हैं।” या “यह ख़बर फेक है”.
असल में यही जतिवाद है- स्वजातीय प्रेम में घटनाओं को न स्वीकारना.
आरोपियों के उन सभी स्वजातीय लोगों को लगता है कि हम हवा हवाई बात लिख रहे हैं, न उन्हें हमारे प्लेटफॉर्म के बारे में पता करना है न खबर के भीतर की चीजें पढ़नी हैं। उन्हें बस अपने स्वजातीय आरोपी को पाक साफ बताना है। अगर्में अपने द मूकनायक प्लेटफोर्म की बात करूँ तो यहां उसके बारे में संक्षिप्त जानकारी दे सकता हूँ. द मूकनायक एकलौता दलित, आदिवासी और हाशिए के समाज की आवाज उठाने वाला समाचार मंच है जिसकी प्रोफाइल न्यूयार्क टाइम्स, अल जजीरा, DW न्यूज, वाइस ऑफ़ अमेरिका, आउटलुक इंडिया सहित कई अन्य प्रतिष्ठित राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय समाचार समूहों में हो चुकी है.
अब आते हैं विषय पर.. दलित उत्पीड़न की हमारी ख़बरों, सूचनाओं को फर्जी बताने वाले आरोपियों के स्वजातीय भाईयों, जब पूरी जिंदगी में कभी एक बार भी जातीय भेदभाव का सामना नहीं किये हो तो जतिवाद जैसी चीज अजूबा लगेंगी ही। देश में सविधान है, बोलने, पढ़ने, लिखने की आज़ादी है। द्वापर त्रेता युग नहीं है यह। अम्बेडकर, फुले, पेरियार का दौर है यह। इसे समय से समझ जाएंगे तो सुकून से साथ मिलकर रह पाएंगे, नहीं तो आजीवन स्वयं के सुप्रीमेसी के बोझ, और हाशिए के लोगों से ईर्ष्या के बोझ तले दबे रहेंगे.
फिर भी आपको लगता है कि जातिगत भेदभाव, जातिगत उत्पीड़न की ख़बर प्रकाशित करके हमनें फेक न्यूज़ फैलाई है तो आप कानूनी कार्रवाई के लिए आगे बढ़ सकते हैं, हम आपका उचित जवाब कोर्ट में देंगे।
लेकिन, इससे पहले आपको इत्मीनान से पूरी ख़बर पढ़नी चाहिए। खबर में शामिल तथ्यों को अपने तरीके से जांच पड़ताल करनी चाहिए। अगर आपको लगता है कि कोई खबर फर्जी छपी है तो आप उस घटना वाले क्षेत्र के स्थानीय थानाध्यक्ष को कॉल करके मामले की जानकारी भी ले सकते हैं।
अगर यह सब आप नहीं कर पाते, और आपके लिए सिर्फ यही आसान है कि खबरों के नीचे लिख देना कि यह फर्जी खबर है, तो आप ऐसे ही करते रहिए। आपके लिए और क्या सुझाव हो सकता है?
ख़ैर, जातिवाद पर मेरा यह कई अनुभवों में एक अनुभव यह भी था। मेरे इस ब्लॉग से जुड़ें रहें, फिर कभी ऐसे ही किसी मुद्दे पर आपसे मुलाक़ात होगी। आपने इतने ध्यानपूर्वक इसे पढ़ा इसके लिए हम आपके आभारी हैं।
—समाप्त—
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