मोबाइल, टीवी और गेम्स की गिरफ्त में नई पीढ़ी: चेतना, संवेदना और जिज्ञासा हो रही खत्म
आप इस आधुनिक सदी में भी घंटों व्यर्थ के काम में मशगूल हैं। घर की पढ़ी लिखी महिलाएं टीवी पर धारावाहिक कार्यक्रमों में व्यस्त हैं। बच्चे मोबाइल और सोशल मीडिया पर घंटों बिता रहें हैं। इसी बीच समाज में, देश में क्या घट रहा उन्हें कोई खबर नहीं। जिन बच्चों में असीमित जिज्ञासाएं होनी चाहिए थी वह चेतना शून्य, विवेकहीन, क्रोधी होते जा रहें हैं।
ये बच्चे बड़े होकर क्या करेंगे? क्या सोचेंगे? क्या किसी मुश्किल हालात में फंसने पर खुद को उससे निकाल पाएंगे? क्या किसी की मदद करने के लिए वह ख़ुद को तैयार कर पाएंगे? ज़ाहिर है, उन्हें मुश्किल होगी।
जरूरी यह देखना है कि आपका दिनभर का समय सबसे अधिक किस काम में बीत रहा है? अगर उस काम के कोई दूरगामी बेहतर परिणाम हो तो जारी रख सकते हैं, अन्यथा आप अपने जीवन का पूरा एक बहुमूल्य दिन गंवा चुके हैं।
मैं एक पत्रकार हूं, अभी सारा काम घर से ही करता हूँ। किसी रोज़ अगर किसी ऐसे सामाजिक हित के मसले पर रिपोर्ट न बनाऊं तो अंदर से मन कचोटता है, बार-बार ख्याल आता है कि आज कुछ ढंग का काम नहीं किया। जब किसी पीड़ित के लिए बेहतर रिपोर्ट बना चुका होता हूँ, ताकि उसकी मदद हो सके तभी मन को सुकून मिलता है। मैं देश भर में सबसे उम्दा कार्य करने का दावा नहीं करता, लेकिन आपको अपने समय संयोजन के प्रति अगाह कर रहा हूँ। आप एक गहरे खाई में जा रहें हैं। संभाल जाइए, जब जागेंगे तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
एक बेहतर कल के लिए जरूरी तैयारी आज से, अभी से ही करनी होगी। यह एक भ्रम फैलाया गया है कि आप छोटे हैं, कुछ कर नहीं सकते, आपके बस की बात नहीं! यह बिल्कुल निरर्थक बातें हैं। असल में आप असीम शक्ति के मालिक हैं। लेकिन आप सो रहे हैं। जागने के लिए ख़ुद को क्रियाशील करना पड़ेगा। स्कूली किताबों के अलावा अच्छे लेखकों की किताबें पढ़नी पड़ेंगी, देश-दुनिया के कल्चर को पढ़ना-जानना पड़ेगा। और सबसे जरूरी बात, सबके प्रति स्नेह और प्रेम का भाव रखना होगा।
बच्चों के मनोरंजन के टूल्स अब इतने शक्तिशाली हो चुके हैं कि वह जो चाहेंगे बच्चे वैसे ही बनते जाएंगे, वैसा ही सोचेंगे जैसा उनके मोबाइल गेम का एल्गोरिथ्म सेट किया गया है। एक समय बाद वह खुद वह न होकर कुछ और बन चुका होगा, उसमें नफरत, क्रोध, चिड़चिड़ापन दिखने लगेगा। यही पहचान है कि वह गलत रास्ते पर है। हमेशा अवसादग्रस्त होगा वह।
पूरी दुनिया में तकनीकी और वर्चुअल रियलिटी वाले आकर्षक गेम्स बनाने की होड़ लगी है। कंपनियों को पैसा अरबों डॉलर का मार्केट खड़ा करना है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से गेम्स बनाने वाली कंपनियां युवाओं और कम उम्र के सोशल मीडिया यूजर्स के विहैबियर्स का भारी मात्रा में डेटा खरीदते हैं, फिर उस डेटा का इस्तेमाल एक आकर्षक गेम बनाने में डिजाइन किया जाता है, ताकि बच्चा बिना भूख-पानी के दिनों रात उसी से चिपका रहे।
आप कल्पना नहीं कर सकते कि आपका बच्चा भविष्य में कैसा मानसिक विक्षिप्त हो सकता है। उसके पास हाथ-पैर तो होंगे लेकिन वह कुछ बेहतर करने में हमेशा असमर्थ होगा। उसके सोचने-समझने, और जिज्ञासाओं की क्षमताओं को उन गेम्स ने सोख जो लिया होगा। उन्हें हमेशा सहारे की जरूरत पड़ेगी।
अच्छी बात यह है कि कुछ सामाजिक कार्यकर्ता इस मसले पर काम कर रहें हैं। साथ ही इसपर एकाध बार अखबारों में इस्तेहार भी छप जाती है, या इससे होने वाली घटनाओं के बारे में कुछ खबरें आ जाती हैं। लेकिन इससे क्या फायदा होगा, अगर आप और आपके बच्चे सचेत नहीं हुए।
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