जब होमो सेपियन्स ने ग्रह के आधे विशाल पशुओं को विनाश की ओर धकेल दिया था— जानें इतिहास की यह दिलचस्प कहानी

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अक्सर कुछ अध्येता होमो सेपियन्स को निर्दोष साबित करने और सारा दोष जलवायु परिवर्तन के मत्थे मढने की कोशिश करते हैं (जिसके लिए उन्हें यह मानना पड़ता है कि किन्हीं रहस्यमय वजहों से कैरिबियाई द्वीपों का वातावरण 7,000 सालों तक स्थिर बना रहा, जबकि बाक़ी पश्चिमी गोलार्ध गर्माता रहा), लेकिन अमेरिका में मांस के गोले को चकमा नहीं दिया जा सकता। हम अपराधी हैं। वास्तविकता यही है। अगर जलवायु परिवर्तन ने भी हमें उकसाया हो, तब भी मनुष्य का योगदान निर्णायक था। आज हम जानेंगे कि कैसे इंसानों में सबसे बुद्धिमान प्रजाति होमो सेपियन्स ने अन्य प्रजातियों का समूल नाश करने के लिए जिम्मेदार है.

इस तथ्य को जानने और सच मानने के लिए हमें प्रसिद्द इजराइली इतिहासकार युवाल नोआह हरारी की विश्व प्रसिद्ध किताब सेपियन्स: मानव-जाति का संक्षिप्त इतिहास की ओर रुख करना पड़ेगा. तो आइए आज समझते हैं अपने दिलचस्प इतिहास की इस कड़ी को — होमो सेपियन्स कैसे अन्य प्रजातियों के विलुप्त होने का प्रमुख जिम्मेदार है!

अगर हम ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में हुए सामूहिक विनाशों को मिला दें और उसमें उस छोटे पैमाने के विनाशों को जोड़ दें, जो अफ्रो-एशिया में होमो सेपियन्स के फैलने के साथ हुए, जैसे कि तमाम अन्य मानव प्रजातियों का विनाश और उन विनाशों को भी इसमें शामिल कर दें, जो उस वक़्त हुए, जब प्राचीन भोजन-खोजी क्यूबा जैसे सुदूर द्वीपों पर जा बसे, तो इसका अपरिहार्य निष्कर्ष यह है कि सेपियन्स के उपनिवेशीकरण की पहली लहर प्राणी जगत पर आई सबसे बड़ी और सबसे तीव्र गति की पारिस्थितिकीय विपदाओं में से एक है।

सबसे गहरा आघात झेलने वाले थे विशालकाय रोएँदार प्राणी। संज्ञानात्मक क्रान्ति के समय यह ग्रह ज़मीन पर रहने वाले 50 किलोग्राम से ज़्यादा वज़न वाले स्तनधारियों की लगभग 200 क़िस्मों का घर हुआ करता था। कृषि क्रान्ति के समय तक इनमें से लगभग सौ क़िस्में बची रह गई। मनुष्यों द्वारा पहिए, लेखन-कला या लोहे के औज़ारों का आविष्कार किए जाने के बहुत पहले होमो सेपियन्स ने ग्रह के लगभग आधे विशाल पशुओं को विनाश की ओर धकेल दिया था।

कृषि क्रान्ति के बाद इस पारिस्थितिकीय दुःखान्त नाटक को इसके लघु रूप में असंख्य बार प्रस्तुत किया गया। एक के बाद एक द्वीप का पुरातात्त्विक रिकॉर्ड यही दुःखद कहानी कहता है। इस दुःखान्त नाटक की शुरुआत विशाल प्राणियों की एक समृद्ध और वैविध्यपूर्ण आबादी के दृश्य के साथ होती है, जिसमें मनुष्य का कोई नामोनिशान नहीं है। दूसरे दृश्य में एक मानवीय अस्थि, एक भाले की नोक या शायद बर्तन के किसी टूटे टुकड़े के साक्ष्य के रूप में सेपियन्स प्रकट होते हैं। तीसरा दृश्य इसके तुरन्त बाद आता है, जिसमें मर्द और औरतें मंच को घेरे होते हैं और अनेक छोटे प्राणियों के साथ-साथ ज़्यादातर बड़े प्राणी मंच से गायब हो चुक होते हैं।

अफ्रीका के मुख्य भू-भाग से लगभग 400 किलोमीटर पूर्व में स्थित मैडागास्कर का बड़ा द्वीप एक प्रसिद्ध उदाहरण पेश करता है। लाखों सालों तक अलग-थलग बने रहे इस द्वीप पर प्राणियों का एक अनूठा समूह विकसित हुआ। इन प्राणियों में गज पक्षी (एलिफेंट बर्ड) नामक तीन मीटर ऊँचा और लगभग आधे टन वजन वाला उडने में असमर्थ एक प्राणी – दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी – और भूमण्डल के सबसे बडे वानर भीमकाय लेमर शामिल थे।

मैडागास्कर के ज्यादातर अन्य बडे प्राणियों के साथ-साथ ये गज पक्षी और भीमकाय लेमर 1,500 साल पहले सहसा गायब हो गए- ठीक तब, जब प्रथम मानवों ने इस द्वीप पर अपने क़दम रखे।

प्रशान्त महासागर में विनाश की पहली लहर की शुरुआत लगभग 1500 ईसा पूर्व में हुई, जब पोलीनेशियाई कृषक सोलोमन द्वीपों, फिज़ी और न्यू कैलेडोनिया में आकर बस गए। उन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष ढंग से पक्षियों, कीडों, घोंघों और दूसरे स्थानीय बाशिन्दों की सैकड़ों प्रजातियों को मार डाला। वहाँ से विनाश की यह लहर सामोआ और टोंगा के अनूठे प्राणी जगत का सफ़ाया करती हुई धीरे-धीरे प्रशान्त महासागर के मध्य में पूर्व, दक्षिण और उत्तर की तरफ़ (1200 ईसा पूर्व), माविस द्वीप (1 ईसवी), ईस्टर द्वीप, कूक द्वीप और हवाई (500 ईसवी) और अन्त में न्यूजीलैंड (1200 ईसवी) की ओर बढ़ी।

ऐसी ही पारिस्थितिकीय तबाहियाँ उन हज़ारों द्वीपों में से प्रत्येक द्वीप पर घटित हुईं, जो अटलांटिक महासागर, हिन्द महासागर, आर्कटिक महासागर और भूमध्य सागर में बिखरे हुए हैं। पुरातत्त्वविदों ने छोटे से छोटे द्वीपों पर उन पक्षियों, कीडों और घोंघों के साक्ष्य खोजे हैं, जो वहाँ असंख्य पुश्तों तक रहे हैं और जो सिर्फ तभी लुप्त हुए हैं, जब प्रथम मानव कृषक वहाँ पहुँचे।

केवल थोड़े से अत्यन्त दूर स्थित द्वीप ही आधुनिक समय तक इंसान की निगाहों से बचे रह सके हैं और ये द्वीप अपने प्राणी जगत को सुरक्षित बनाए हुए हैं। एक प्रसिद्ध उदाहरण लें, तो गालापगोस द्वीप उन्नीसवीं सदी तक मनुष्यों की बसावट से मुक्त रहे और इस तरह अपने प्राणी समूह को बचाए रख सके, जिसमें उनका वह विशालकाय कछुआ भी शामिल है, जो प्राचीन डाइप्रोटोडॉनों की तरह ही मनुष्यों से डरने का कोई संकेत नहीं देता।

विनाश की पहली लहर भोजन खोजियों के प्रसार के साथ-साथ आई थी। इसके बाद विनाश की दूसरी लहर उठी, जिसके साथ कृषकों का प्रसार हुआ। यह हमें उस विनाश की तीसरी लहर का महत्त्वपूर्ण परिप्रेक्ष्य उपलब्ध कराती है, जो विनाश आज औद्योगिक गतिविधि के कारण हो रहा है।

वृक्षों को गले लगाने वाले उन लोगों पर विश्वास मत करें, जिनका दावा है कि हमारे पूर्वज प्रकृति के साथ सामंजस्य के रिश्ते में रहते थे। औद्योगिक क्रान्ति के बहुत-बहुत पहले होमो सेपियन्स का समूचे जीव-जगत के बीच ज़्यादातर वनस्पतियों और जीव प्रजातियों को उनके विनाश की ओर धकेलने का कीर्तिमान रहा है। जीव-विज्ञान के ऐतिहासिक अभिलेखागार में हम सर्वाधिक विध्वंसकारी प्रजाति होने की सन्दिग्ध पहचान रखते हैं।

अगर ज़्यादातर लोग विनाश की पहली और दूसरी लहर के प्रति सजग रहे होते, तो वे शायद उस तीसरी लहर के प्रति कम लापरवाह रहे होते, जिसका वे हिस्सा हैं। अगर हम जानते होते कि हमने कितनी प्रजातियों को पहले ही जड़ से उखाड़ दिया है, तो हम उन प्रजातियों को बचाने के लिए ज़्यादा प्रेरित होते, जो अभी भी बची हैं।

यह बात ख़ास तौर से महासागरों के विशाल प्राणियों के सन्दर्भ में प्रासंगिक है। इन विशाल समुद्री प्राणियों ने अपने ज़मीनी जोड़ीदारों से भिन्न संज्ञानात्मक और कृषि क्रान्तियों से अपेक्षाकृत कम कष्ट झेला है, लेकिन आज इनमें से कई प्राणी औद्योगिक प्रदूषण और समुद्री संसाधनों के अतिरेकपूर्ण मानवीय इस्तेमाल के परिणामस्वरूप विलुप्त होने के कगार पर हैं।

अगर हालात मौजूदा रफ्तार से जारी रहे, तो पूरी सम्भावना है कि व्हेल, शार्क, ट्यूना और डॉल्फ़िन गुमनामी के उसी गर्त में चले जाएँगे, जिसमें डाइप्रोटोडॉन, ज़मीनी स्लॉथ और मैमथ चले गए हैं। इस इंसानी प्रलय से दुनिया के बड़े जीवों के बीच जो एकमात्र जीव बचे रह जाएँगे, वे स्वयं इंसान होंगे और वे बाड़े के जानवर होंगे।

समाप्त

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