रस्किन की किताब ‘अनटू दिस लास्ट’ से गांधीजी को कैसे मिला जीवन बदलने वाला दृष्टिकोण — जानिए उनकी आत्मकथा में दर्ज यह दिलचस्प प्रसंग
सत्य, अहिंसा और परोपकार के महान प्रणेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अपनी जीवनी की पुस्तक “द स्टोरी ऑफ़ माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ” में चर्चित लेखक रस्किन की लिखी क़िताब “अनटू दिस लास्ट” को एक प्रभावी किताब बताते हैं. उन्हें इसे उनके जीवन में जादुई असर डालने वाला बताया है. महात्मा गांधी के बारे में इस किताब से जुड़ी यह दिलचस्प कहानी पाठकों को रोमांचित करती हुई जिज्ञासाओं को बढ़ाती है.
महात्मा गांधी अपनी जीवनी — द स्टोरी ऑफ़ माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ — में लिखते हैं:
ब्लैक प्लेग ने गरीब भारतीयों के बीच मेरा प्रभाव बढ़ा दिया था और साथ ही मेरा व्यवसाय और जिम्मेदारियां भी बढ़ गई थीं। मेरे यूरोपियन लोगों से इतने प्रगाढ़ संबध हो गए थे कि उनकी वजह से भी मेरी नैतिक जिम्मेदारियां और बढ़ गईं।
मेरा परिचय मिस्टर पोलक से शाकाहारी रेस्तरां में वैसे ही हुआ था, जैसे कि मिस्टर वेस्ट के साथ। एक शाम एक युवक जो मुझसे थोड़ी दूर दूसरी टेबल पर खाना खा रहा था, उसने अपना कार्ड भेजा और मुझसे मिलने की इच्छा प्रकट की। मैंने उसे अपनी मेज पर आने का निमंत्रण दिया, वह वहां आया भी।
“मैं द क्रिटिक का संपादक हूं।” उसने कहा- “जब मैंने आपका प्लेग के बारे में प्रेस में छपा पत्र पढ़ा तो मेरे अंदर आपसे मिलने की तीव्र इच्छा हुई। मुझे खुशी है कि मुझे यह अवसर मिला।”
मिस्टर पोलक की साफगोई मुझे अच्छी लगी और इसने मुझे उसकी ओर आकर्षित किया। उसी शाम हमने एक-दूसरे को जान लिया। हमारे जीवन की आवश्यक चीजों पर एक ही तरह के विचार थे। उसे सादा जीवन पसंद था। वह जो भी पढ़ता, पसंद आने पर वह उसे अपने जीवन में उपयोग करने लगता। उसने कुछ ऐसे बदलाव किए थे, जो काफी हटकर और तुरंत प्रभावी थे।
इंडियन ओपीनियन दिन पर दिन महंगा साबित हो रहा था। सबसे पहले जो रिपोर्ट मुझे मिस्टर वेस्ट ने भेजी, वह चौंकाने वाली थी। उन्होंने लिखा- “मुझे उम्मीद नहीं है कि जिस प्रकार के लाभ की आप कल्पना कर रहे थे जिसे आपने सोचा था, वैसे की यहां अपेक्षा नहीं की जा सकती है। मुझे डर है कि यहां नुकसान भी हो सकता है। हिसाब-किताब की पुस्तकें व्यवस्थित नहीं हैं और काफी बड़ी मात्रा में धन वसूली करनी है, लेकिन इसका कोई छोर समझ में नहीं आ रहा। इसमें काफी कुछ ठीक-ठाक करना पड़ेगा, लेकिन इन सबसे आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। मैं अपनी सामर्थ्य के अनुसार जितना ठीक हो सकेगा, उसे करूंगा। मैं यहीं बना रहूंगा, चाहे पत्रिका लाभ में रहे या न रहे।”
मिस्टर वेस्ट छोड़कर जा सकते थे। जब उन्हें पता चला कि इसमें कोई फायदा होने वाला नहीं है और इसके लिए मैं उन्हें दोषी नहीं ठहराता। वास्तव में उन्हें मुझ पर आरोप लगाना चाहिए था कि बिना किसी साक्ष्य के मैंने उसे फायदे वाला कैसे कहा था, लेकिन उन्होंने इस बारे में कभी भी एक शब्द नहीं कहा। मुझे लगा इस जानकारी ने मुझे मिस्टर वेस्ट की नजरों में एक विश्वास करने योग्य व्यक्ति बनाया। मैंने बहुत सरलता से श्रीयुत मदनजीत के आकलन को बिना उसे देखे स्वीकार कर लिया था और उस आधार पर मिस्टर वेस्ट को लाभ की आशा करने के लिए कहा था।
मुझे लगता है कि एक सामाजिक कार्यकर्ता को कभी ऐसा वक्तव्य नहीं देना चाहिए, जिसको उसने परखा नहीं है। यही नहीं, सच का पक्ष लेने वाले को सबसे ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति को उस बात पर विश्वास करने के लिए कहना, जिसने उसे सत्यापित नहीं किया है, अन्यथा यह सच के साथ समझौता करने जैसा होगा। मुझे यह स्वीकार करते हुए दुःख हो रहा है कि इस ज्ञान के बावजूद मैंने इतनी आसानी से विश्वास करने वाली आदत को पूरी तरह से नहीं जीता है। इसके लिए मेरी अपनी क्षमता से ज्यादा कार्य करने की इच्छा जिम्मेदार है। यह महत्त्वाकांक्षा मुझसे ज्यादा मेरे सहयोगियों के लिए चिंता का स्रोत है।
मिस्टर वेस्ट के पत्र को पाने के बाद मैं नेटल के लिए निकल गया। मैंने मिस्टर पोलक को अपने विश्वास में ले लिया था। वे मुझे स्टेशन तक छोडने आए और मुझे यात्रा में पढने के लिए एक पुस्तक दे गए। उन्होंने कहा कि आपको यह पुस्तक जरूर पसंद आएगी। यह पुस्तक थी रस्किन की अनटू दिस लास्ट।
एक बार शुरू करने के बाद पुस्तक को किनारे रखना असंभव था, इसने मुझे पूरी तरह से जकड़ लिया था। जोहान्सबर्ग से डरबन चौबीस घंटे की यात्रा थी। ट्रेन वहां शाम को पहुंची। मैं उस रात एकदम भी नहीं सो सका था। मैंने अपना जीवन पुस्तक के आदर्शों के अनुसार बदलने का निश्चय किया।
यह रस्किन की मेरी पहली पुस्तक थी, जिसे मैंने पढ़ा था। पढ़ाई करते समय मैंने अपनी पाठ्य पुस्तकों के अलावा कुछ नहीं पढ़ा था। जब मैं सक्रिय जीवन में आया तो मेरे पास पढ़ने के लिए बहुत कम समय रहता था, इसलिए मैं ज्यादा किताबी ज्ञान का दावा नहीं कर सकता, फिर भी मेरा मानना है कि इतने प्रतिबंधों के बावजूद मैंने ज्यादा कुछ खोया नहीं है, बल्कि इसके विपरीत यह भी कहा जा सकता है कि सीमित पढ़ाई की वजह से जो कुछ मैंने पढ़ा, उसे पूरी तरह से समझा और अपने में आत्मसात् किया। जितनी पुस्तकें अब तक मैंने पढ़ीं उनमें अनटू दिस लास्ट उसी समय से मेरे जीवन में व्यावहारिक बदलाव लाई। मैंने बाद में इसका गुजराती भाषा में अनुवाद किया और उसका शीर्षक सर्वोदय (सबका कल्याण) रखा।
मेरा विश्वास है मेरे अंदर की गहरी आस्थाओं को रस्किन की इस पुस्तक में मैंने प्रतिबिंबित होते हुए देखा, इसीलिए इसने मुझे अपनी ओर इतना आकर्षित किया और मेरे जीवन को बदला। एक अच्छा कवि वह है, जो आपके अंदर निहित मानवीय हृदय में बसी अच्छी गहरी भावनाओं को जगा सके। कवि सभी को एक ही तरह से प्रभावित नहीं करते, क्योंकि हर कोई एक ही तरीके से विकसित नहीं हुआ है।
अनटू दिस लास्ट की शिक्षाएं जैसी मैंने समझी, इस प्रकार हैं-
1. सबकी भलाई में ही व्यक्ति की भलाई है।
2. एक वकील और नाई के काम का मूल्य बराबर है, क्योंकि हर किसी को अपने काम से अपना जीवनयापन करना है।
3. श्रम का जीवन, चाहे वह जमीन जोतने वाला हो या हस्त-शिल्पकार का, वही जीने योग्य है।
पहली शिक्षा को मैं पहले से जानता था। दूसरी का मुझे हल्का-सा ज्ञान था और आखिरी वाली शिक्षा ने इसे मेरे लिए दिन के उजाले की तरह स्पष्ट कर दिया था कि दूसरी और तीसरी शिक्षा, पहली शिक्षा में निहित है। मैं सुबह इस धारणा के साथ उठा कि इन सिद्धांतों को यथार्थ जीवन में साकार करना है।
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