कट्टरता के भ्रमजाल में फंसे युवाओं को सम्राट अशोक से सबक लेने की ज़रूरत है, जिन्होंने हिंसा नहीं शांति का रास्ता चुना।
बीते कुछ सालों से नए नए युवाओं को कट्टर हिन्दू, सनातनी और पता नहीं क्या क्या बनने का शौक़ ट्रेंड पर है। सोशल मीडिया के बायो में भगवा झंडा, या “कट्टर हिन्दू” का हैशटैग जरूर दिख जाएगा आपको। हालांकि इसमें कोई अपराध नहीं, लेकिन मैंने देखा है ऐसे सैकड़ों सोशल मीडिया एकाउंट्स से भद्दी-भद्दी गालियां, महिलाओं, सेलेब्रिटीज़, महिला नेत्रियों को रेप की धमकियां धड़ल्ले से दी जाती हैं। कई बार तो इनके प्रोफाइल में हिन्दू देवी देवताओं की तस्वीरें भी होती हैं। यह हद दर्जे का पागलपन देखकर सर दर्द होने लगता है।
आप ऐसे युवाओं की सामाजिक पृष्ठभूमि देखेंगे तो हैरान हो जाएंगे। एक समय बाद ये लोग जोश में कई असंवैधानिक कार्य कर बैठते हैं और अपना भविष्य खराब कर बैठते हैं। मैं यह बात इसलिए नहीं लिख रहा हूँ कि उन्हें ‘कट्टर” बनने से रोक रहा हूँ। बल्कि, आगाह कर रहा हूँ। आत्मनिरीक्षण करने को कह रहा हूं।
कलिंग से बड़ा प्रत्यक्ष/प्रामाणिक/ऐतिहासिक युद्ध कभी हुआ है भारतीय इतिहास में मिथकों को छोड़कर??
उस श्रेष्ठ जीत का विजेता चाहता तो पूरे भारत में हिन्दू देवी देवताओं के मंदिरों का तांता लगा देता। लेकिन ऐसा नहीं किया। क्यों? कभी सोचने की फुरसत मिली? चाहते तो वह आप से लाख गुना बड़े वाले कट्टर सनातनी निकलते!!
कभी सोचा आपने कि किस अमूर्त चीज के लिए आपकी मुसलसल जंग जारी है? क्या चीज आपको अंदर से खा रही है, कट्टर होने के लिए उकसा रही है? मुस्लिम राष्ट्र होने जाने का डर या हिन्दू धर्म के खतरे में होने का डर?
अगर दोनों में से कोई भी डर, या दोनों डर मन में बैठा है तो आप अभी घर वापसी कर लीजिए। अभी वक्त है, फिर वापसी मुश्किल हो जाएगी। इससे आपको व्यक्तिगत कुछ हासिल नहीं होगा। इससे आपका परिवार नहीं चलेगा, इससे आपके समाज का गौरव नहीं बढ़ेगा, इससे आपका राष्ट्र तरक्की नहीं करेगा, इससे हम विश्वगुरु नहीं बन सकते। फिर यह राह क्यों अख्तियार करना?
आप कितना भी तीसमार खा बन जाए लेकिन कभी सम्राट अशोक नहीं बन पाएंगे! ऐसा इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि एक दिन सबकुछ जीतने के बाद उन्हें आभास हुआ कि उनका सब होते हुए भी उनका कुछ नहीं है। 1 लाख से भी अधिक लोगों के हुए नरसंहार का कोई अर्थ न निकला, सिवाय रोजाना मन को तकलीफ देने और दिमाग को कचोटने के..!!
उन्हें कुछ न सूझा तो वह महात्मा बुद्ध की शरण में चले गए। हिंसा त्याग दिया, भविष्य में कभी तलवार न उठाने का संकल्प ले लिया। और पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म का प्रचार किया, और कराया। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि, आखिर सम्राट अशोक ने हिंदू धर्म को क्यों नहीं आगे बढ़ाया। उन्हें कोई उस समय रोकने वाला पैदा हुआ था क्या? नहीं!!
आज उसी अशोक चक्र में हमारे राष्ट्र का ध्वज शान से सभी सरकारी निकायों पर लहराता है। अशोक स्तंभ हमारे शौर्य गाथाओं में जुड़ गया। देखा जाए तो पूरा भारत प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से एक बुद्धिस्ट सम्राट के लगभग अलंकारों को लेकर आज भी हर समय चलता है। फिर आप अपनी पहचान “कट्टर” बनाने में खुद को खपा रहे हैं…?
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